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उत्तराखंड

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) पर बढ़ता विवाद: सरकार के तर्क, याचिकाएं और अगली सुनवाई

Admin
Last updated: अप्रैल 3, 2025 6:23 पूर्वाह्न
Admin
Published अप्रैल 3, 2025
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UCC पर उत्तराखंड सरकार का पक्ष

उत्तराखंड सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में साफ किया है कि समान नागरिक संहिता (UCC) राष्ट्रीय एकता, लैंगिक समानता और सामाजिक समरसता को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक है। सरकार ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ अपने तर्क पेश करते हुए कहा कि यह किसी भी धर्म या समुदाय के खिलाफ नहीं है, बल्कि महिलाओं और बच्चों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए लाया गया एक ऐतिहासिक कदम है।

Contents
UCC पर उत्तराखंड सरकार का पक्षयूसीसी और निजता का अधिकारUCC के खिलाफ याचिकाएं और 22 अप्रैल की सुनवाईमुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान

सरकार ने कोर्ट में यह भी स्पष्ट किया कि UCC के तहत विवाह और लिव-इन संबंधों का पंजीकरण अनिवार्य किया गया है। सरकार के अनुसार, इससे महिलाओं और उनके बच्चों को कानूनी अधिकार प्राप्त होंगे और उनकी सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित होगी।

यूसीसी और निजता का अधिकार

ucc uttarakhand

याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट में दलील दी थी कि लिव-इन रिलेशनशिप का पंजीकरण निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है और इससे लोगों की निजी जानकारियां सार्वजनिक हो सकती हैं। लेकिन राज्य सरकार ने अपने जवाब में कहा कि पंजीकरण का उद्देश्य केवल रिकॉर्ड बनाए रखना है, न कि किसी की व्यक्तिगत स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करना।

सरकार ने 2017 के पुट्टस्वामी बनाम भारत सरकार मामले का हवाला देते हुए कहा कि निजता का अधिकार पूर्ण नहीं है और राज्य उचित कानूनी उद्देश्यों के लिए कुछ सीमित प्रतिबंध लगा सकता है। सरकार ने यह भी कहा कि 15 से अधिक राज्यों में विवाह पंजीकरण अनिवार्य किया जा चुका है, और यह कोई नया प्रावधान नहीं है।

UCC के खिलाफ याचिकाएं और 22 अप्रैल की सुनवाई

UCC के खिलाफ नैनीताल हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई हैं, जिनमें मुख्य रूप से लिव-इन रिलेशनशिप और मुस्लिम विवाह प्रथाओं को लेकर आपत्तियां जताई गई हैं। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप के पंजीकरण से उनकी निजता भंग होती है और उन्हें समाज में अनावश्यक जोखिम का सामना करना पड़ सकता है।

इसके अलावा, मुस्लिम और पारसी समुदायों ने भी अपनी धार्मिक परंपराओं की अनदेखी का आरोप लगाया है। उनका कहना है कि यह कानून उनकी व्यक्तिगत आस्थाओं और धार्मिक रीति-रिवाजों का उल्लंघन करता है।

हाईकोर्ट ने इन सभी याचिकाओं पर विचार करते हुए अगली सुनवाई की तारीख 22 अप्रैल तय की है। कोर्ट ने सरकार को अपना पक्ष रखने के लिए और समय दिया है ताकि वह याचिकाकर्ताओं की चिंताओं का विस्तृत जवाब प्रस्तुत कर सके।

मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी का बयान

उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस विषय पर एक बड़ा बयान देते हुए कहा कि UCC किसी भी धर्म, संप्रदाय या परंपरा के खिलाफ नहीं है, बल्कि यह समाज में समानता और न्याय सुनिश्चित करने के लिए लाया गया एक कानून है। उन्होंने कहा कि यह कानून महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा के लिए बेहद आवश्यक है और इससे समाज में समरसता स्थापित होगी।

मुख्यमंत्री ने कहा कि UCC से देश में नई चेतना जागेगी और अन्य राज्यों को भी इसे लागू करने की प्रेरणा मिलेगी। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की नीतियों की प्रशंसा करते हुए कहा कि 370 हटाने, तीन तलाक खत्म करने और अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण जैसे ऐतिहासिक फैसलों की तरह यह कानून भी एक महत्वपूर्ण सामाजिक सुधार साबित होगा।

उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता (UCC) पर कानूनी और सामाजिक विवाद गहराता जा रहा है। सरकार का दावा है कि यह कानून राष्ट्रीय एकता, लैंगिक समानता और महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए आवश्यक है, जबकि याचिकाकर्ताओं का कहना है कि इससे उनकी निजता और धार्मिक परंपराओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

अब सभी की निगाहें 22 अप्रैल को होने वाली हाईकोर्ट की सुनवाई पर टिकी हैं, जहां सरकार और याचिकाकर्ताओं के तर्कों पर विस्तृत चर्चा होगी और इस ऐतिहासिक कानून की वैधता पर बड़ा फैसला आ सकता है।

📌 नोट: यह समाचार विभिन्न ऑनलाइन स्रोतों और समाचार एजेंसियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर तैयार किया गया है।

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