Syalde Bikhauti Mela द्वाराहाट (अल्मोड़ा):वैशाख माह की पहली तिथि को पाली पछाऊं क्षेत्र में स्याल्दे बिखौती का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मेला बड़े धूमधाम से आयोजित हुआ। इस मेले में पिनोली गांव सहित आल और गरख दलों की विशेष भागीदारी रही, जिसमें हजारों ग्रामीणों ने परंपरागत वेशभूषा में ढोल-नगाड़ों, रणसिंघों और भगनौलों के साथ ओड़ा भेटने की रस्म अदा की।
इतिहास से जुड़ा सांस्कृतिक वैभव
स्याल्दे बिखौती मेला अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट कस्बे और उसके पास स्थित विभाण्डेश्वर मंदिर में दो भागों में आयोजित होता है। पहला भाग चैत्र मास की अंतिम तिथि को विभाण्डेश्वर मंदिर में और दूसरा वैशाख माह की पहली तिथि को द्वाराहाट बाजार में होता है। इस मेले की परंपरा इतनी पुरानी है कि इसका प्रारंभिक समय ज्ञात नहीं, परंतु यह माना जाता है कि शीतला मंदिर में श्रद्धालु वर्षों से देवी को श्रद्धा सुमन अर्पित करते आए हैं।
एक प्राचीन घटना में दो दलों के बीच संघर्ष हुआ और एक दल के सरदार का सिर काटकर जिस स्थान पर गाड़ा गया, वहाँ एक पत्थर रख दिया गया जिसे “ओड़ा” कहा जाता है। अब यही पत्थर स्याल्दे मेले का केंद्र बिंदु बन गया है, जहाँ ओड़ा भेटने की परंपरा निभाई जाती है।
2025 का आयोजन: आल और गरख दलों ने निभाई परंपरा
इस वर्ष भी मेले में गरख दल की ओर से सलना, बसेरा, असगोली, कोटीला, छतगुल्ला, बूंगा, सिमलगांव सहित 14 गांवों ने भाग लिया जबकि आल दल की ओर से पिनोली, तल्ली-मल्ली मिरई, विजयपुर, किरोली, डढोली, मल्ली मिरई के नगाड़ों और निशानों ने मेले में रंग भर दिया।
रात्रि में विभाण्डेश्वर मंदिर में मशालों की रोशनी में लोकनर्तकों की टोलियां पहुंचीं। हुड़के, चिमटे और बीन-बाजे की धुनों पर झोड़ा और भगनौले गीतों ने माहौल को संगीतमय बना दिया।
🎶 झोड़ों में झलकी सामाजिक चेतना
युवाओं ने लोकगीतों और झोड़ों के माध्यम से वर्तमान सामाजिक परिस्थितियों को प्रस्तुत किया – “सरकारी स्कूला बंद हुणि छन, नान लगूनी सूट” जैसे गीतों में शिक्षा, रोजगार, और पानी की समस्याएं उजागर की गईं।
रंगारंग सांस्कृतिक प्रस्तुतियां बनी आकर्षण
शीतलापुष्कर मैदान में देर रात तक सांस्कृतिक कार्यक्रमों की धूम रही। गोलू गाथा, गढ़वाली- कुमाउनी लोकनृत्य, पारंपरिक गायन और झोड़े की प्रस्तुतियों ने दर्शकों को बांधे रखा। गेवाड़ सांस्कृतिक कला मंच, यूनिवर्सल कान्वेंट स्कूल, एमडी तिवारी इंटर कॉलेज समेत कई टीमों ने भाग लिया।
जलेबी बनी आकर्षण का केंद्र
पारंपरिक रूप से मेले में जलेबी खाना विशेष माना जाता है। इस बार भी द्वाराहाट बाजार की गलियां जलेबी के स्वाद से महक उठीं।
सांस्कृतिक मूल्यों के क्षरण के इस दौर में स्याल्दे बिखौती मेला आज भी अपनी परंपराओं को जीवंत रखे हुए है। पिनोली गांव जैसे क्षेत्रों की सक्रिय भागीदारी ने यह सिद्ध किया कि लोक परंपराएं आज भी जनमानस में गहराई से बसी हैं।
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