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उत्तराखंड में अवैध मदरसों(illegal Madrasas) पर सरकार की बड़ी कार्रवाई, 15 दिनों में 52 मदरसों पर ताला, विपक्ष और मुस्लिम संगठन हमलावर

Admin
Last updated: मार्च 13, 2025 12:57 अपराह्न
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Published मार्च 13, 2025
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उत्तराखंड सरकार ने बीते 15 दिनों में राज्यभर में 52 अवैध और बिना पंजीकरण चल रहे मदरसों(illegal Madrasas) को सील कर दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के निर्देश पर हुई इस कार्रवाई को लेकर मुस्लिम संगठनों और विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। मुस्लिम संगठनों ने इसे “अल्पसंख्यकों पर हमला” करार दिया, वहीं बसपा प्रमुख मायावती ने इसे “धार्मिक भेदभाव” से प्रेरित कदम बताया।

Contents
क्या है सरकार की दलील?अवैध मदरसों(illegal Madrasas) पर कार्रवाई क्यों?विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का विरोधमदरसों की स्थिति और धार्मिक स्वतंत्रता का सवालक्या आगे और कार्रवाई हो सकती है?मदरसों पर कार्रवाई और राष्ट्रीय राजनीतिनिष्कर्ष

क्या है सरकार की दलील?

राज्य सरकार के अनुसार, इन मदरसों का निर्माण अवैध रूप से किया गया था और कई बिना किसी मान्यता या पंजीकरण के संचालित हो रहे थे। सरकारी अधिकारियों के मुताबिक, यह अभियान जनवरी 2024 में शुरू किया गया था, और इसे राज्य में अवैध निर्माण और अतिक्रमण के खिलाफ उठाए जा रहे कदमों का हिस्सा बताया जा रहा है। मुख्यमंत्री धामी ने कहा, “सही को छेड़ेंगे नहीं और गलत को छोड़ेंगे नहीं।” उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि इन संस्थानों की फंडिंग की जांच की जाएगी।

सरकार के सूत्रों के अनुसार, देहरादून में 42 और उधमसिंह नगर के खटीमा में 10 मदरसों को सील किया गया। मार्च 1 से अब तक राज्य के विभिन्न जिलों में अवैध रूप से संचालित कई अन्य मदरसों पर भी कार्रवाई की गई है।

अवैध मदरसों(illegal Madrasas) पर कार्रवाई क्यों?

राज्य प्रशासन ने कहा कि उन्हें खुफिया रिपोर्ट्स और जमीनी स्तर पर किए गए सत्यापन के दौरान पता चला कि कई मदरसों का निर्माण गैरकानूनी ढंग से किया गया था और वे किसी भी प्रकार के शैक्षिक मानकों का पालन नहीं कर रहे थे। इसके अलावा, कुछ मदरसों को “धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में अवैध गतिविधियों” में संलिप्त पाया गया।

सरकारी सूत्रों के अनुसार, विशेष रूप से पाश्चिमी दून (पश्चिमी देहरादून) और अन्य संवेदनशील क्षेत्रों में अनधिकृत मदरसों की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हुई थी। राज्य प्रशासन का कहना है कि कुछ स्थानों पर बिना अनुमति के धार्मिक शिक्षण संस्थानों की संख्या तेजी से बढ़ रही थी, जिससे क्षेत्रीय संतुलन और सांप्रदायिक सौहार्द्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना थी।

सरकार का दावा है कि यह केवल “अवैध निर्माण” और “गैर-पंजीकृत शैक्षणिक संस्थानों” के खिलाफ की गई कार्रवाई है और इसे किसी समुदाय विशेष के खिलाफ उठाया गया कदम नहीं माना जाना चाहिए।

विपक्ष और मुस्लिम संगठनों का विरोध

सरकार की इस कार्रवाई पर विपक्षी दलों और मुस्लिम संगठनों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने इस कदम को अल्पसंख्यक विरोधी बताते हुए कहा कि यह सरकार का ध्यान भटकाने का प्रयास है। कुरैशी ने कहा, “राज्य में बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और आपदाओं जैसे गंभीर मुद्दे हैं, लेकिन सरकार इन पर ध्यान न देकर अल्पसंख्यकों को निशाना बना रही है।”

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि प्रशासन ने किसी भी मदरसे को पहले से कोई नोटिस नहीं दिया और अचानक सील करने की कार्रवाई की गई, जिससे 2000 से अधिक छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई। उन्होंने सवाल किया कि इन छात्रों की शिक्षा जारी रखने के लिए सरकार के पास क्या योजना है।

बसपा प्रमुख मायावती ने भी उत्तराखंड सरकार की इस कार्रवाई की आलोचना की। उन्होंने कहा कि भाजपा सरकार को “धार्मिक पूर्वाग्रह” से बचना चाहिए और ऐसे कदम नहीं उठाने चाहिए जो समाज में विभाजन पैदा करें। उन्होंने कहा, “सरकार को निष्पक्षता से काम करना चाहिए और किसी भी समुदाय को निशाना नहीं बनाना चाहिए।”

मदरसों की स्थिति और धार्मिक स्वतंत्रता का सवाल

उत्तराखंड समेत भारत के कई राज्यों में मदरसे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ सामान्य शिक्षा भी प्रदान करते हैं। कई मदरसों को सरकारी मान्यता प्राप्त होती है और वे शिक्षा विभाग से जुड़े होते हैं, लेकिन कई अन्य स्वतंत्र रूप से संचालित होते हैं।

सरकार का कहना है कि जिन मदरसों पर कार्रवाई की गई है, वे अवैध रूप से चल रहे थे और उनका कोई नियमन नहीं था। वहीं, मुस्लिम संगठनों का कहना है कि मदरसों को सरकारी मान्यता की आवश्यकता नहीं होती और वे समुदाय के सहयोग से संचालित होते हैं।

क्या आगे और कार्रवाई हो सकती है?

उत्तराखंड सरकार की इस कार्रवाई को राज्य में अवैध अतिक्रमण हटाने के अभियान का हिस्सा बताया जा रहा है। पिछले साल भी सरकार ने वन क्षेत्र में किए गए अवैध अतिक्रमणों को हटाने की मुहिम चलाई थी, जिसके तहत 450 से अधिक मज़ारों (सूफी संतों के मकबरे) को गिराया गया था। इसके अलावा, सरकार ने 50 से अधिक मंदिरों को भी हटाने की कार्रवाई की थी।

मुख्यमंत्री धामी ने स्पष्ट किया कि उत्तराखंड में किसी भी अवैध निर्माण को बर्दाश्त नहीं किया जाएगा, चाहे वह किसी भी समुदाय से संबंधित हो। उन्होंने कहा कि इस अभियान के तहत आगे भी कार्रवाई जारी रह सकती है।

मदरसों पर कार्रवाई और राष्ट्रीय राजनीति

उत्तराखंड सरकार की यह कार्रवाई ऐसे समय में हुई है जब देशभर में धार्मिक संस्थानों पर सरकारी नियंत्रण को लेकर बहस तेज़ हो रही है। उत्तर प्रदेश, असम और अन्य राज्यों में भी मदरसों की निगरानी बढ़ाई गई है और कई जगह अवैध रूप से चल रहे संस्थानों को बंद करने की प्रक्रिया शुरू की गई है।

असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा पहले ही यह कह चुके हैं कि राज्य में अवैध मदरसों को बंद करने का अभियान जारी रहेगा। इसी तरह, उत्तर प्रदेश में भी मदरसों का सर्वेक्षण किया गया है ताकि उनकी वैधता की जांच की जा सके।

निष्कर्ष

उत्तराखंड में अवैध मदरसों के खिलाफ सरकार की इस कार्रवाई से राज्य में राजनीतिक और सांप्रदायिक माहौल गरमा गया है। सरकार इसे कानून-व्यवस्था और अवैध निर्माण के खिलाफ उठाया गया कदम बता रही है, जबकि विपक्ष और मुस्लिम संगठन इसे अल्पसंख्यकों पर हमला करार दे रहे हैं।

भले ही सरकार इस कार्रवाई को “अवैध निर्माण के खिलाफ अभियान” करार दे रही हो, लेकिन इसका राजनीतिक असर साफ दिखाई दे रहा है। आने वाले दिनों में यह देखने योग्य होगा कि क्या सरकार इस अभियान को अन्य धार्मिक संस्थानों तक भी बढ़ाएगी या यह केवल मदरसों तक ही सीमित रहेगा। विपक्ष भी इस मुद्दे को लेकर सरकार पर हमलावर बना हुआ है, जिससे यह मामला आने वाले समय में और तूल पकड़ सकता है।

नोट: यह समाचार इंटरनेट स्रोतों से संकलित किया गया है और केवल सूचना के उद्देश्य से साझा किया गया है।

Image for representational purposes only. | Photo Credit: pexels

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