Dunagiri Temple, जिसे स्थानीय रूप से माँ दुनागिरी मंदिर या द्रोणगिरि मंदिर के नाम से जाना जाता है, उत्तराखंड के अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट क्षेत्र में स्थित एक प्राचीन और पवित्र स्थान है। यह मंदिर समुद्र तल से करीब 8000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है और यहाँ पहुँचने के लिए लगभग 400 सीढ़ियाँ चढ़नी होती हैं। यह स्थान न केवल आध्यात्मिक ऊर्जा से भरपूर है, बल्कि घने देवदार और चीड़ के जंगलों के बीच स्थित होने के कारण प्रकृति प्रेमियों के लिए भी अत्यंत आकर्षक है।

Dunagiri Temple का पौराणिक महत्व
इस मंदिर से जुड़ी कई पौराणिक कथाएं हैं। त्रेता युग में जब रावण के पुत्र मेघनाथ के शक्ति बाण से लक्ष्मण मूर्छित हो गए थे, तब हनुमान जी को संजीवनी बूटी लाने के लिए द्रोणाचल पर्वत भेजा गया था। कहा जाता है कि जब वे संपूर्ण पर्वत लेकर लौट रहे थे, तो उसका एक हिस्सा इस स्थान पर गिरा। वही आज माँ दुनागिरी का स्थान माना जाता है।
द्वापर युग में पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य ने भी इस स्थान पर तपस्या की थी, जिससे इस स्थान को द्रोणगिरि नाम मिला। स्कंद पुराण, मानस खंड और अन्य पुरातन ग्रंथों में इस स्थान का विशेष उल्लेख मिलता है। इसे ब्रह्म पर्वत, मायामहेश्वरी धाम और महामाया हरप्रिया की तपोस्थली भी कहा जाता है।
Dunagiri Temple की विशेषताएँ
इस मंदिर के गर्भगृह में किसी देवी की मूर्ति नहीं है, बल्कि दो शिलाएं हैं जिन्हें सिद्ध पिंड माना जाता है और इन्हीं की पूजा माँ भगवती के रूप में की जाती है। यहाँ बलि प्रथा या नारियल फोड़ने की कोई परंपरा नहीं है, क्योंकि यहाँ देवी का स्वरूप वैष्णवी माना जाता है। मंदिर में अखंड दीप जलता रहता है और यहाँ की पूजा विधि अत्यंत शांत और श्रद्धा-पूर्ण होती है।
उत्तर भारत में वैष्णवी शक्तिपीठों में इस मंदिर का दूसरा स्थान है—पहले स्थान पर जम्मू-कश्मीर स्थित वैष्णो देवी आती हैं। मान्यता है कि जो महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना से यहाँ अखंड दीप जलाकर पूजा करती हैं, उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है।
नवरात्रि के आयोजन
नवरात्रियों के दौरान यहाँ विशेष आयोजन होते हैं। सप्तमी की रात जागरण होता है और अष्टमी को महागौरी की पूजा के साथ भव्य मेला लगता है। इस दौरान उत्तराखंड और अन्य राज्यों से हजारों श्रद्धालु यहाँ माँ के दर्शन के लिए आते हैं।
Dunagiri Temple का इतिहास
इतिहासकारों के अनुसार 1318 ईस्वी में कत्यूरी राजा सुधारदेव ने यहाँ देवी की मूर्ति की स्थापना की थी। बाद में वर्ष 1920 में ग्रामीणों ने मिलकर मंदिर का वर्तमान स्वरूप तैयार किया। इससे पहले यह स्थान दो शिलाओं के रूप में खुली छत के नीचे पूजित था। ब्रिटिश सैन्य अधिकारी मेजर ई. मैडन ने 1847 में अपने यात्रा वृत्तांत में इस शक्तिपीठ का उल्लेख किया था।
Dunagiri Temple के आस-पास के स्थल
इस क्षेत्र में एक और स्थान “गणेशाधर” के नाम से जाना जाता है, जो भगवान गणेश से जुड़ा हुआ माना जाता है। यहाँ से पूरे हिमालय की श्रृंखला का सुंदर और भव्य दृश्य देखा जा सकता है। यही कारण है कि यह स्थान केवल धार्मिक ही नहीं, बल्कि ध्यान, साधना और आत्मिक शांति की खोज में लगे लोगों के लिए आदर्श स्थल माना जाता है।
How to Reach Dunagiri Temple
Dunagiri Temple पहुँचने के लिए कई विकल्प हैं:
सड़क मार्ग से: द्वाराहाट से मंदिर की दूरी लगभग 15 किलोमीटर है। वहाँ से मंदिर तक सीढ़ियों से चढ़ाई करनी होती है। अल्मोड़ा से दूरी लगभग 65 किलोमीटर और रानीखेत से लगभग 43 किलोमीटर है।
रेल मार्ग से: सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन काठगोदाम है, जो यहाँ से लगभग 140 किलोमीटर दूर है। काठगोदाम से टैक्सी या बस द्वारा द्वाराहाट पहुँचा जा सकता है।
हवाई मार्ग से: निकटतम एयरपोर्ट पंतनगर है, जो लगभग 170-180 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। दिल्ली से पंतनगर के लिए सीधी फ्लाइट उपलब्ध हैं। एयरपोर्ट से टैक्सी लेकर आप द्वाराहाट पहुँच सकते हैं।
दिल्ली से आने वाले यात्रियों के लिए सबसे अच्छा विकल्प है – दिल्ली से काठगोदाम तक ट्रेन या फ्लाइट लें और फिर टैक्सी से द्वाराहाट आएं।
यात्रा के लिए सुझाव
Dunagiri Temple की यात्रा के लिए सबसे उपयुक्त समय मार्च से जून और सितंबर से नवंबर के बीच होता है। यहाँ का मौसम ठंडा होता है, इसलिए गर्म कपड़े और अच्छे ट्रैकिंग शूज़ जरूर साथ रखें।
Dunagiri Temple केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आत्मिक शांति, ऊर्जा और प्रकृति का केंद्र है। यहाँ आकर व्यक्ति मन, शरीर और आत्मा—तीनों में शुद्धता और शांति का अनुभव करता है। अगर आप उत्तराखंड की यात्रा पर हैं, तो माँ दुनागिरी के दर्शन अवश्य करें।
जय माँ दुनागिरी!
नोट: यह जानकारी विभिन्न पौराणिक स्रोतों, धार्मिक ग्रंथों और शोध पर आधारित है। किसी प्रकार की भ्रामक जानकारी के लिए Pahadi.in उत्तरदायी नहीं है।